Thursday, May 28, 2009

ग़ज़ल - - - बडी कोताहियाँ जी लीं, बड़ी आसानियाँ जी लीं



ग़ज़ल

बडी कोताहियाँ जी लीं, बड़ी आसानियाँ जी लीं,
कि अब जीना है फ़ितरत को, बहुत नादानियाँ जी लीं.

तलाशे हक़ में रह कर, अपनी हस्ती में न कुछ पाया,
कि आ अब अंजुमन आरा!, बहुत तन्हाईयाँ जी लीं.

जवानी ख्वाब में बीती, ज़ईफ़ी सर पे आ बैठी,
हक़ीक़त कुछ नहीं यारो, कि बस परछाइयाँ जी लीं.

मेरी हर साँस, मेरे हाफ्ज़े से, मुन्क़ते कर दो,
कि बस उतनी ही रहने दो, कि जो रानाइयाँ जी लीं.

जो घर में प्यार के काबिल नहीं, तो दर गुज़र घर हो,
बहुत ही सर कशी झेलीं, बहुत ही ख़ामियाँ जी लीं.

तआकुब क्या, तजाऊज़, कुछ ख़ताएँ कर रहीं 'मुंकिर',
इन्हें रोको कि कफ़्फ़ारे  की, हमने सख्तियाँ जी लीं.
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*फितरत=प्रक्रिति *हक=खुदा * हाफ्ज़े=स्मरण *मुन्क़ते=विच्छिन *तआकुब=पीछा करना *तजाऊज़=उल्लंघन *कफ्फारे=प्राश्यचित

Friday, May 22, 2009

ग़ज़ल - - - इस्तेंजाए खुश्क की इल्लत में लगे हैं


ग़ज़ल

इस्तेंजाए ख़ुश्क की, इल्लत में लगे हैं,
वह बे नहाए धोए, तहारत में लगे हैं.

मीरास की बला, ये बुजुर्गों से है मिली,
तामीर छोड़ कर वह, अदावत में लगे हैं.

वह गिर्द मेरे, अपनी ग़रज़  ढूँढ रहा है,
हम बंद किए आँख, मुरव्वत में लगे हैं.

दोनों को सर उठाने की, फुर्सत ही नहीं है,
ख़ालिक़ से आप, हम है कि खिल्क़त से लगे हैं.

तन्हाई चाहता हूँ , तड़पने के लिए मैं,
ये सर पे खड़े, मेरी अयादत में लगे हैं.

'मुंकिर' ने नियत बांधी है, अल्लाह हुअक्बर,
फिर उसके बाद, आयते ग़ीबत में लगे हैं.$
*****
# इस शेर का मतलब किसी मुल्ला से दरयाफ्त करें.*मीरास=पैत्रिक सम्पत्ति *तामीर=रचनात्मक कार्य *खालिक=खुदा *अयादत =पुरसा हाली $=कहते हैं की नमाज़ पढ़ते समय शैतान विचारो में सम्लित हो जाता है.

Saturday, May 16, 2009

ग़ज़ल - - - हम घर के हिसरों का सफ़र छोड़ रहे हैं


ग़ज़ल

हम घर के हिसारों का, सफ़र छोड़ रहे हैं,
दुन्या भी ज़रा देख लें, घर छोड़ रहे हैं.

मन में बसी वादी का, पता ढूंढ रहे हैं,
तन का बसा आबाद नगर छोड़ रहे है.

जाते हैं कहाँ पोंछ के, माथे का पसीना?
लगता है कोई, कोर कसर छोड़ रहे हैं.

फिर वाहिद ए मुतलक की, वबा फैल रही है,
फिर बुत में बसे देव, शरर छोड़ रहे हैं.

सर मेरा कलम है कि यूं मंसूर हुवा मैं,
'जुंबिश' को हवा ले उडी, सर छोड़ रहे हैं.

है सच की सवारी पे ही मेराज मेरा यह,
'मुंकिर' नहीं, जो 'उनकी' तरह छोड़ रहे हैं.
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*हिसारों=घेरा *वाहिद ए मुतलक=एकेश्वरवाद यानि इसलाम *शरर=लपटें *.

Monday, May 11, 2009

ग़ज़ल - - - मुतलेआ करे चेहरों का चश्मे नव खेजी


ग़ज़ल

मुतालेआ करे चेहरों का, चश्मे नव ख़ेज़ी ,
छलक न जाए कहीं यह, शराब ए लब्रेजी.

हलाकतों पे है माइल, निज़ामे चंगेजी,
तरस न जाए कहीं, आरजू ए खूँ रेज़ी .

अगर है नर तो, बसद फ़िक्र शेर पैदा कर,
मिसाले गाव, बुज़, ओ ख़र है तेरी ज़र ख़ेज़ी.

तू अपनी मस्त ख़ेरामी पे, नाज़ करती फिर,
लुहा, लुहा से न डर, ए जबाने अंग्रेजी.

नए निज़ाम के जानिब क़दम उठा अपने,
ये खात्मुन की सदा छोड़, कर ज़रा तेज़ी .

बचेगी मिल्लत ख़ुद बीं, की आबरू 'मुंकिर',
अगर मंज़ूर हों  मंसूर, शम्स ओ तबरेज़ी.
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*मुतलेआ= अद्ध्य्यन *निजामे=व्योवस्था *गाव, बुज़, खर=भेडें,बकरियां,गधे *उपजता *मिल्लत खुद बीन =इशारा वर्ग विशेष की ओर

Friday, May 8, 2009

ग़ज़ल - - - तू है रुक्न अंजुमन का तेरी अपनी एक खू है


ग़ज़ल 

तू है रुक्न अंजुमन का, तेरी अपनी एक ख़ू है,
मैं अलग हूँ अंजुमन से, मेरा अपना रंग ओ बू है.

वतो इज़ज़ो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए,
जो था शर पे, सुर्ख़ रू है, बेक़ुसूर ज़र्द रू है.

तेरा दीं सुना सुनाया, है मिला लिखा लिखाया,
मेरे ज़ेहन की इबारत, मेरी अपनी जुस्तुजू है.

मुझे खौफ है ख़ुदा का, न ही एहतियात ए शैतान,
नहीं खौफ दोज़खों का, न बेहिश्त आरज़ू है.

वोह नहीं पसंद करते, जो हैं सर्द मुल्क वाले,
तेरी जन्नतों के नीचे, वो जो बहती अब ए जू है.

तेरे ध्यान की ये डुबकी, है सरल बहुत ही जोगी ,
कि बहुत सी भंग पी लूँ ,तो ये पाऊँ तू ही तू है.
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* वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए=खुदा जिसको चाहे इज्ज़त दे,जिसको काहे जिल्लत.

Wednesday, May 6, 2009

ग़ज़ल - - - यह गलाज़त भरी रिशवत

यह गलाज़त भरी रिशवत,
लग रहा खा रहे नेमत.

बैठी कश्ती पे माज़ी के,
फँस गई है बड़ी उम्मत.

कुफ्र ओ ईमाँ का शर लेके,
जग में फैला दिया नफरत.

सर कलम कर दिए कितने,
लेके इक नअरा ए वहदत.

सर बुलंदी हुई कैसी?
आप बोया करें वहशत.

धर्म ओ मज़हब हो मानवता,
रह गई एक ही सूरत.

माँ ट्रेसा बनीं नोबुल,
खिदमतों से मिली अज़मत.

हो गया हादसा आखिर,
हो गई थी ज़रा हफ्लत.

खा सका न वोह 'मुंकिर",
खा गई उसे है उसे दौलत.
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*माज़ी= अतीत *उम्मत=मुस्लमान *शर=बैर *वहदत=एकेश्वर