Saturday, January 31, 2009

ग़ज़ल---इस ज़मीं के वास्ते मिल कर दुआ बन जाएँ हम

ग़ज़ल

इस ज़मीं के वास्ते, मिल कर दुआ बन जाएँ हम,
रह गुज़र इंसानियत हो, क़ाफ़िला बन जाएँ हम।

क्यूं किसी नाहक की मर्ज़ी, की रज़ा बन जाएँ हम,
मुख्तसर सी ज़िन्दगी का, हादसा बन जाएँ हम।



रद्द कर दो रह नुमाई की ये नाक़िस 1 रस्म को,
हो न क़ायद 2 अपना कोई, क़ाएदा बन जाएँ हम।



अब महा भारत न आए, न फ़सादे कर्बला,
शर का शैतान मार के, अमनी फ़िज़ा  बन जाएँ हम।



तुम ज़रा सा ज़िद को छोडो, हम ज़रा सी आन को,
क्या से क्या हो जॉय ये घर, क्या से क्या हो जाएँ हम।



ख़ री जीने पे चढ़ कर, राज़ हस्ती का खुला,
इन्तहा है क़र्ब3 'मुंकिर' इब्तेदा4 बन जाएँ हम।


१-हानि कारक २-पथ प्रदर्शक ३-पीड़ा ४-प्रारम्भ








Friday, January 30, 2009

ग़ज़ल ------बेखटके जियो यार कि जीना है ज़िन्दगी


ग़ज़ल

बेखटके जियो यार, कि जीना है ज़िन्दगी,
निसवां1 है हिचक ,खौफ़ , नरीना2 है ज़िन्दगी।

खनते को उठा लाओ, दफ़ीना है ज़िन्दगी,
माथे पे सजा लो, कि पसीना है ज़िन्दगी।

घर, खेत, सड़क, बाग़ की, राहें सवाब हैं,
काबा न मक्का और न मदीना, है ज़िन्दगी।

नेकी में नियत बद है, तो मजबूर है बदी,
देखो कि किसका कैसा,  क़रीना है ज़िन्दगी।

जिनको ये क़्नाअत3 की नफ़ी4, रास आ गई,
उनके लिए ये नाने-शबीना5 है ज़िन्दगी।

अबहाम6 की तौकों से, सजाए वजूद हो,
'मुंकिर' जगे हुए पे, नगीना है ज़िन्दगी।



१-स्त्री लिंग २-पुल्लिग़ ३-संतोष ४-आभाव ५-बासी रोटी ६-अंध-विशवास










ग़ज़ल -------बहानो पर बहाना


ग़ज़ल

बहानो पर बहाना,
नया फिर इक फ़साना।

तवाज़ुन1 खो चुका हूँ,
न अब सर को उठाना।

तल्लुक़ मुन्क़ता2 हो,
नहीं मिलना मिलाना।

नहीं बर मिल सका था,
कि ऊंचा था घराना।

तहारत3 पर अडे हो,
न तुम हरगिज़ नहाना।

फ़लक़ पर जा बसे हो,
लिखा था आब दाना।


बहुत बारीक से हो,
ज़रा नज़दीक आना।


बहुत सीधा है 'मुंकिर',
न उसका दिल दुखाना।


१-संतुलन २-विच्छेद ३- पवित्रता










ग़ज़ल-------चाहत है तेरी और तेरा इंतेखाब है


ग़ज़ल


चाहत है तेरी, और तेरा इंतेख़ाब है,

क्या दोस्त तेरा, तेरी तरह लाजवाब है?


सो लेना चाहिए, तुझे कुछ देर के लिए,

नींद की हालत में, यह बेजा खिताब1 है।


है एक ही नुमायाँ, वहाँ चाँद की तरह,

बाक़ी हसीन चेहरों के, रुख पे नकाब है।

शायर है बेअमल, कि इसे बा अमल करो,

चक्खी नहीं कभी, मगर मौज़ूअ शराब है।


क़ानून क़ाएदों के, उसूलों की नींद में ,

उस घर में घुस गया, जहाँ जीना सवाब है।


रोका नहीं है भीड़ ने, टोका है, रुका हूँ,

'मुंकिर' को रोक ले, ये भला किस में ताब है।




१ -संबोधन

हिन्दी ग़ज़ल



हिन्दी ग़ज़ल


मन को भेदे, भय से गूथे, विश्वासों का जाल,

अंधियारे में मुझे सताए, मेरा ही कंकाल।


तन सूखा, मन डूबा है, तू देख ले मेरा हाल,

रोक ले शब्दों कोड़ों को, खिंचने लगी है खाल।


सास ससुर हैं लोभी मेरे, शौहर है कंगाल,

नन्द की शादी रुकी है माँ, मत भेज मुझे ससुराल।


इच्छाएँ बैरी हैं सुख की, जी की हैं जंजाल,

जितनी कम से कम हों पूरी, बस उतनी ही पाल।


जब जब बाढ़ का रेला आया, जब जब पडा अकाल,

जनता दाना दाना तरसी, बनिया हुवा निहाल।


वाह वाह की भूख बढाए, टेट में रक्खा माल,

'मुंकिर' छोड़ डगर शोहरत की, पूँजी बची संभाल।

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ

सद बुद्धि दे उसको तू , निराले भगवान्,


अपना ही किया करता है, कौदम नुक़सान,


नफ़रत है उसे, सारे मुसलमानों से,


पक्का हिन्दू है, वह कच्चा इंसान।


*
इंसान नहीफ़ों को, दवा देते है,


हैवान नहीफ़ों को, मिटा देते हैं,


हैं कौन समझदार, यहाँ दोनों में?


कुछ देर ठहर जाओ, बता देते हैं।


नहीफों =कमजोरों

*


कफ़िर है न मोमिन, न कोई शैतां है,


हर रूप में, हर रंग में, बस इन्सां है,


मज़हब ने, धर्म ने, किया छीछा लेदर,


बेहतर है मुअतक़िद * नहीं जो हैवाँ  है।


*आस्थावान




मज़हब है रहे गुम पे, दिशा हीन धरम हैं,


आपस में दया भाव नहीं है, न करम हैं,


तलवार, धनुष बाण उठाए दोनों,


मानव के लिए पीड़ा हैं, इंसान के ग़म हैं।

ग़ज़ल ------साफ़ सुथरी सी काएनात मिले



ग़ज़ल 

साफ़ सुथरी सी काएनात मिले,


तंग जेहनो से कुछ, नजात मिले।



संस्कारों में, धर्म और मज़हब,


न विरासत में जात, पात मिले।



आप की मजलिसे मुक़द्दस1 में,


सिर्फ़ फ़ितनों के, कुछ नुक़ात2 मिले।



तुझ से मिल कर गुमान होता है,


बस की जैसे, खुदा की ज़ात मिले।



उलझी गुत्थी है, सांस की गर्दिश,


एक सुलझी हुई, हयात मिले।



हर्फ़ ए आखीर हैं, तेरी बातें,



इस में ढूंडा कि कोई बात मिले।


१-सदभाव-सभा २-षड़यंत्र-सूत्र

Thursday, January 29, 2009

ग़ज़ल___सब रवाँ मिर्रीख१ पर और आप का यह दरसे-दीन२


ग़ज़ल

सब रवाँ मिर्रीख़ पर, और आप का यह दरसे-दीन ,

कफ़िरीनो-मुशरिकीनो-मुनकिरीनो-मोमनीन3


रौशनी कुछ सर पे कर लो, ताकि परछाईं का क़द,

छोटा हो जाए, तुम्हें कुछ अपने क़द पर हो यक़ीन।


सीखते क्या हो, इबादत और शरीअत के उसूल,

है ख़ुदा तो चाहता होगा, क़तारे ग़ाफ़िलीन।


तलिबाने अफ़ग़नी, और कार सेवक हैं अडे,

वह बजाएं, अपनी ढपली, यह बजाएं अपनी बीन।


जाने कितने काम बाक़ी हैं, जहाँ में और भी,

थोडी सी फुर्सत उसे, दे दे ख़याल ए  नाज़नीन।


साहबे ईमाँ! तुम्हारे हक़ में है 'मुंकिर' की राह,

सैकडों सालों से, ग़ालिब हैं ये तुम पर फ़ास्क़ीन4



१-मंगल ग्रह पर २-धर्म-शास्त्र दर्शन ३-शास्त्र-शीर्षक ४-झूठे

Wednesday, January 28, 2009

ग़ज़ल-----पोथी समाए भेजे में, तब कुछ यकीं भी हो



ग़ज़ल

पोथी समाए भेजे में, तब कुछ यकीं भी हो,


ऐ गूंगी कायनात! ज़रा नुक़ता चीं भी हो।




खोदा है इल्मे नव ने, अक़ीदत के फर्श को,


अब अगले मोर्चे पे, वह अर्शे बरीं2 भी हो।




साइंस दाँ हैं बानी, नए आसमान के,


पैग़म्बरों के पास ही, इन की ज़मी भी हो।


ऐ इश्तेराक़3 ठहर भी, जागा है इन्फ़्राद4,


कहता है थोडी पूँजी, सभी की कहीं भी हो।




बारूद पर ज़मीन , हथेली पे आग है,


है अम्न का तक़ाज़ा, कि हाँ हो, नहीं भी हो।'




'मुंकिर' भी चाहता है, सदाक़त5 पे हो फ़िदा,


इन्साफ़ो आगाही6 को लिए, तेरा दीं7 भी हो।



२-सातवाँ आसमान ३-साम्यवाद ४-व्यक्तिवाद ५-सच्चाई ६न्याय एवं विज्ञप्ति ७-धर्म

Saturday, January 24, 2009

ग़ज़ल- - - शोर-किब्रियाई1 है और स्वर हरे ! हरे !!


ग़ज़ल

शोर-किब्रियाई1 है, और स्वर हरे ! हरे !!


बख्श दे इन्हें खुदा, ईशवर उन्हें तरे।




वह है सच जो तूर पर, माइले-कलाम है?2


या कि उस पहाड़ पर, जो कि है जटा धरे।




आसमाँ पर वह उड़ा, आप का यकीं अरे?


कैसा आदमी था वह, अपनी ज़ात से परे?




कब्र को खिला रहे हो, तुम सवाब की गिज़ा,


तुम को क्या ज़मीन, पर कोई भूक से मरे।




यह ख़ुदा का घर नहीं है, तेरे घर में है ख़ुदा,


क्यूँ भटक रहा है तू, काबा काशी बाँवरे।




है ख़बर कि चल पड़े, दोनों तेरी रह पर,


ये ख़बर भी आएगी, कि दोनों फिर से लड़ मरे।

१-ईश वंदना का शोर २-अर्थात मूसा जो तूर पर्वत पर जाकर ईश्वर से बातें करते थे

Friday, January 23, 2009

गुलकारियां




गुलकारियां

सवाब क्या है, खुशी तुम्हारी,
अज़ाब क्या है, तुम्हारी उलझन,
वहाँ ' पे कुछ भी नहीं है प्यारे,
यहीं पे सब कुछ, है रोजे-रौशन।


इताबे1क़ुदरत, है ख़ौफ़-हैवाँ,
ख़ुदा का क़हर और फ़रेबे-शैतां,
बचे हैं इन्सां, कि बाद इनके,
चलो कि आपस में बाटें सावन।


वो पेड़ दूषित, फ़सल जो उपजें,
चलो कि देखें, जड़ों में इनके,
कहाँ से लेती हैं गर्म सासें,
कहाँ से पाती हैं दुष्ट जीवन।


ख़ुदा को क़िस्तों में माना हम ने,
थी ख़ौफ़ अव्वल और लौस3 दोयम,
फ़रेब, धोखा थी क़िस्त सोयम,
और चौथी, जंगें, विजय, समर्पन ।


अजब हैं ज़ेहनी इबारतें यह,
सवाल उज्जवल जवाब मद्धम,
ख़याल 'उस' की तरफ़ है मायल,
दिमाग़ मांगे सुबूतो-दर्शन।


शबाब क़ातिल, बला का जोबन,
बहक गई है यह महकी जोगन,
इसे ठिकाना बुला रहा है,
कोई बनाए इसे सुहागन।

१-प्राकृतिक आपदा २-पशु-भय ३ -लालच






Thursday, January 22, 2009

आस्तिक और नास्तिक


नज़्म 

आस्तिक और नास्तिक


बच्चों को लुभाते हैं परी देव के क़िस्से,


ज़हनों में यकीं बन के समाते हैं ये क़िस्से,




होते हैं बड़े फिर वह समझते हैं हक़ीक़त,


ज़ेहनों में मगर रहती है कुछ वैसी ही चाहत।




इस मौके पे तैयार खडा रहता है पाखण्ड,


भगवानो-खुदा, भाग्य, कर्म ओ  का क्षमा दंड।




नाकारा जवानों को लुभाती है कहानी,


खोजी को मगर सुन के सताती है कहानी।




कुछ और वह बढ़ता है तो बनता है नास्तिक,


जो बढ़ ही नहीं पारा वह रहता है आस्तिक।

गीत बनाम ख़लील जिब्रान


गीत 

बहुत थके ऐ हमराही अब, आओ ज़रा सा सुस्ताएँ,
तुम भी प्यासे, हम भी प्यासे, चलो थकावट पीजाएँ।




अरमानो के बीज दबे हैं, बर्फ़ीली चट्टानों में,
बरखा रानी हिम पिघला, अंकुर फूटें, हम लहराएं।




कुछ न बोलें, होंट न खोलें, शब्दों की परछाईं तले,
चारों नयनों के दरपन को, सारी छवि दे दी जाएँ।




तेरे तन की झीनी चादर, मेरे देह की तंग क़बा,
आओ दोनों परिधानों को, उतन पुतन कर सी जाएँ।




सूरज के किरनों से बंचित, नर्म हवाओं से महरूम,
काया क़ैदी कपडों की है, आओ बगावत की जाएँ।


ग़ज़ल - - - आज़माने की बात करते हो,


ग़ज़ल

आज़माने की बात करते हो,


दिल दुखाने की बात करते हो।




उसके फ़रमान में, सभी हल हैं,


किस फ़साने की बात करते हो।




मुझको फुर्सत मिली है रूठों से,


तुम मनाने की बात करते हो।




ऐसी मैली कुचैली गंगा में,


तुम नहाने की बात करते हो।




मेरी तक़दीर का लिखा सब है,


मार खाने की बात करते हो।




झुर्रियां हैं जहाँ कुंवारों पर ,


उस घराने की बात करते हो।




हाथ 'मुंकिर' दुआ में फैलाएं,


क़द घटाने की बात करते हो।

ग़ज़ल - - - कौन आमादाए फ़ना होगा,



ग़ज़ल

कौन आमादाए फ़ना होगा,


कोई चारा न रह गया होगा।




लूट लूँ सोचता हूँ ख़ुद को मैं,


दूसरे लूट लें लूट लें बुरा होगा।




एडियाँ जूतियों की ऊँची थीं,


क़द बढ़ाने में गिर गया होगा।




दे रहे हो ख़बर क़यामत की,


कान में तिनका चुभ गया होगा।


अब तो तबलीग़वह चराता है,


पहले तबलीग़ को चरा होगा।




दफ़अतन वह उरूज3 पर आया,


कोई पामाल4 हो गया होगा।




मेरे बच्चे हैं कामयाब सभी,


मेरे आमाल का सिलह होगा।




आँखें राहों पे थीं बिछी 'मुंकिर',


किस तरह माहे-रू चला होगा।




१-धर्म प्रचार २-अचानक ३-शिखर ४-मलियामेt

Wednesday, January 21, 2009

दोहे


दोहे

अन्तर मन का टोक दे, सबसे बड़ा अज़ाब,


पाक साफ़ रोटी मिले , सब से बड़ा सवाब।




क़ुदरत ही है आइना, प्रकृति ही है माप,


तू भी उसका अंश है, तू भी उसकी नाप।




बा-मज़हब मुस्लिम रहे, हिदू रहे सधर्म,


अवसर दंगा का मिला, हत्या इन का धर्म।




गति से दुरगत होत है, गति से गत भर मान,


गति की लागत कुछ नहीं, गति के मूल महान।




काहे हंगामा करे, रोए ज़ारो-क़तार,


आंसू के दो बूँद बहुत हैं, पलक भिगोले यार।




'मुंकिर' कच्ची सोच है, ऊपर है इनआम,


इस में गारत कर लिया, नीचे का मय जाम।




हम में तुम में रह गई, न नफ़रत न चाह,


बेहतर है हो जाएँ अब, अलग अलग ही राह.




तुलसी बाबा की कथा, है धरा परवाह,


राम लखन के काल के, जैसे होएं गवाह।

Tuesday, January 20, 2009

मुस्कुराहटें


शोधक

मेरे सच का विरोध करते हैं,


ईश वाणी पे शोध करते हैं,


फिर वह लाते हैं, भाग्य का शोधन,


नास्तिक पर क्रोध करते हैं।


कालिख  

दाढ़ी है सन सफ़ैद  मोछा सफ़ैद है,


धोती निरी  सफ़ैद  कुरता सफ़ैद है,


नेता की टोपी जूता  मोज़ा सफ़ैद है,


देख सखी झूट कितना  सफ़ैद है


ढांचों के ढेंचू

दो सोलहवीं सदी के बहादुर थके हुए,


रक्तों की प्यास, खून की लज़्ज़त चखे हुए,


फ़िर से हुए हैं दस्तो-गरीबां यह सींगदार,


इतिहास की ग़लाज़तें सर पर रखे हुए।


Sunday, January 18, 2009

रुबाइयाँ

1


तुम भी अगर जो सोचो, विचारो तो सुनो,



अबहाम के शैतान को, मारो तो सुनो,



कुछ लोग बनाते हैं, तुम्हें अपना सा,



ख़ुद अपना सा बनना है , गर यारो तो सुनो।




१-अन्धविश्वास


2


'मुंकिर' की ख़ुशी जन्नत, तौबा तौबा,



दोज़ख़ से डरे ग़ैरत, तौबा तौबा



बुत और ख़ुदाओं से ताल्लुक उसका,



लाहौल वला,क़ूवत, तौबा तौबा।


3


अल्लाह ने बनाया है, जहानों सामां,


मशकूक खिरद है, कहूं हाँ या नां,


इक बात यक़ीनन है, सुनो या न सुनो,


अल्लाह को बनाए है, क़यास इन्सां।












ग़ज़ल -----किताब सर से उतरा है कहे देता हूँ


ग़ज़ल

किताब सर से उतरा है, कहे देता हूँ,

हमारे सर में भी पारा है, कहे देता हूँ।


फ़क़त नहीं वह तुम्हारा है, कहे देता हूँ,

सभी का उस पे इजारा है, कहे देता हूँ।



सवाब पढ़ के पढा के मिले, तो लानत है,

सवाब जीना गवारा है, कहे देता हूँ।


हज़ार साला पुराना, है वतीरा हाफिज़,

यह सर का भारी ख़सारा1 है, कहे देता हूँ।


दिमाग माने, कोई धर्म या कोई मज़हब,

लहू में पुरखों की धारा है, कहे देता हूँ।


यही नकार2 तो 'मुंकिर'की जमा पूँजी है,

इसी ने उसको संवारा है, कहे देता हूँ।



१-हानि २ -इंकार


हिदी ग़ज़ल



ग़ज़ल

स्वार्थ की भाषा ड्योढा बांचे, लालच पढ़े सवय्या,
रिश्तों में जब गांठ पड़े, तो कोई बहेन न भय्या।

घूर घूर के जुरुवा देखे, टुकुर टुकुर ऊ मय्या,
दो फाडों में चीरे हम को, घर की ताता थय्या।

दूध पूत से छुट्टी पाइस, भूखी खड़ी है गय्या,
इस के दुःख को कोई न देखे, देखै खड़ा क़सय्या।

गुरू गोविन्द की पुडिया बेचे, कबर कमाए रुपय्या,
पाखंड और कलाकारी की, ईश चलाए नय्या।

गिरजा और गुरुद्वारे बोलें, ज़ोर लगा के हय्या!
मन्दिर, मस्जिद इक दूजे की, काटे हैं कंकय्या।

किसके लागूं पाँव खड़े हैं गाड, खुदा और दय्या,
'मुंकिर' को ये कोई न भाएँ, सब को रमै रमय्या




टीसें

कृपण

बन के बीमार लेट लेता हूँ,


मुंह पे चादर लपेट लेता हूँ,


ऐ शनाशाई तेरी आहट से,


अपनी किरनें समेट लेता हूँ।


१-परिचय


संकेत

शमशान में जलती हुई, लाशों का नज़ारा,


या क़ब्र में उतरी हुई, मय्यत का इशारा,


दो दिन की ज़िंदगी के लिए, एक सबक़ हैं,


समझो तो समझ पाओ, कि कितना हो तुम्हारा।


ढलान

हस्ती है अब नशीब में, सब कुछ ढलान पर,


कोई नहीं जो मेरे लिए, खेले जान पर,


ख़ुद साए ने भी मेरे, यूँ तकरार कर दिया,


सर पे है धूप, लेटो, मेरा क़द है आन पर।


१-ढाल

मुस्कुराहटें

कुँवारत गई

बन्ने का और संवारने का मौक़ा न मिल सका,


खुशियों से बात करने का मौक़ा न मिला सका,


बन्दर से खेत ताकने में ही ज़िन्दगी कटी,


कुछ और कर गुजरने का मौक़ा न मिल सका।


बंधक


ऋण के गाहक बन बैठे हो,


शून्य के साधक बन बैठे हो,


किस से मोक्ष और कैसी मोक्ष,


ख़ुद में बंधक बन बैठे हो।


प्रेत आत्माएं

जेब में कुछ ले के आए हो कि बस दर्शन किया,


मैं हूँ मर्यादा पुरूष, है मूल्य मेरा रूपया,


तुम ने ही जन्मा है हम को, नाम ज्ञानेश्वर दिया,


जी रहा हूँ ऐश से ऐ बेवकूफ़ो! शुक्रया.

Friday, January 16, 2009

मुस्कुराहटें




फ़क़ीर का ज़मीर

कम बख्त इक फ़कीर जो दफ्तर में आ घुसा,
बोला कि बेटा जीता रहे, लिख दे ख़त मेरा।

कागज़, कलम था हाथ में, बढ़ कर थमा दिया,
मैं ने भी कारे-खैर यह फ़ैसला किया।

कहने लगा कि जोरू को लिख दे मेरा सलाम,
लिख दे कि आज कल ज़रा ढीला है अपना काम।

माहे-रवाँ में लिख दे कि गर्दिश मेहरबां,
इस वजह सिर्फ़ साठ सौ रपया है कुल रवां।

अगले महीने काकाफ़ी बचत की उम्मीद है, 

हिन्दू की दीवाली है , मुसलमाँ की ईद है। 

मैंने कहा कि लो ये, बुरे हाल लिख दिया ,
कहने लगा कि बेटा ! अब हो जाए कुछ भला .

यह सुनके मेरा ज़ेहनी तवाज़ुन* बिगड़ गया,
मुंह से निकल गया कि, तेरी - - - - - - -- -- .


*-संतुलन