अपना सूरज
अपने सूरज में गर समाना है,
और कुछ कर के ही दिखाना है,
अपनी हस्ती को बर्क़१ पर रख के,
तर्क-लज़्ज़त२ का ज़ायका चख के,
तर्क-लज़्ज़त२ का ज़ायका चख के,
अपने माहौल को सुलाते हुए,
अपने मीरास३ को भुलाते हुए,
अपने मीरास३ को भुलाते हुए,
अपने साए को नान्घ कर बढ़ जा,
मरहले४ डाक, मंज़िलें चढ़ जा।
मरहले४ डाक, मंज़िलें चढ़ जा।
ख़ुद को पहचान एक साज़ है तू ,
आपो दीपो भवः का राज़ है तू ।
तू जहाँ है वहां पे कोहरा है,
मुन्तज़िर5 तेरा हुस्ने ज़ोहरा६ है।
१-बिजली २-स्वाद त्याग ३-धरोहर ४-पडाव ५-एक सितारा
१-बिजली २-स्वाद त्याग ३-धरोहर ४-पडाव ५-एक सितारा
No comments:
Post a Comment