Friday, December 19, 2008

कब तक


नज़्म 

कब तक ?

अंधी गुफाओं में कब तक छुपोगे ?

नस्लों के हमराह कब तक चुकोगे ?

गुमबद, शिवालों के कारीगरों पर ,

सदियों से झुकते हो, कब तक झुकोगे ?

 

क़ौमे नई सीढियाँ गढ़ रही ,

देखो ख़लाओं की छत चढ़ रही हैं ,


तुम हो कि माज़ी से लिपटे हुए हो ,

नस्लें तुम्हारी दुआ पढ़ रही हैं .

 

जागो नई रोशनी  गयी है ,

सच्चाइयों को ज़मीं पा गयी है ,

रस्मों के जालों में उलझे हुए हो ,

तह्जीबे नव, इससे घबरा गयी है .


पीछे बहुत रह  जाओ दिवानो ,

 ख़्वाबों की जन्नत में जाओ दिवानो ,

बच्चों को आगे बढाओ दिवानो ,

'मुंकिरके संग जाग जाओ दिवानो .



खलाओं =क्षितिजो


















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