Saturday, December 27, 2008

सना 1


सना  1

तूने सूरज चाँद बनाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने तारों को चमकाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने बादल को बरसाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने फूलों को महकाया, होगा हम से क्या मतलब।



तूने क्यूं बीमारी दी है, तू ने क्यूं आजारी दी?
तूने क्यूं मजबूरी दी है, तूने क्यूं लाचारी दी?
तूने क्यूं महकूमी दी है, तूने क्यूं सलारी दी?
तूने क्यूं अय्यारी दी है, तूने क्यूं मक्कारी दी?

तूने क्यूं आमाल बनाए, तूने क्यूं तक़दीर गढा?
तूने क्यूं आज़ाद तबअ दी, तूने क्यूं ज़ंजीर गढा?
ज़न,ज़र,मय में लज़्ज़त देकर, उसमें फिर तक़सीर गढा,
सुम्मुम,बुक्मुम,उमयुन कहके, तअनो की तक़रीर गढा




बअज़ आए तेरी राहों से, हिकमत तू वापस लेले,
बहुत कसी हैं तेरी बाहें, चाहत तू वापस लेले,
काफ़िर, 'मुंकिर' से थोडी सी नफ़रत तू वापस लेले,
दोज़ख़ में तू आग लगा दे, जन्नत तू वापस लेले।




शीर्षक =ईश-गान १-आधीनता २-सेनाधिकार ३-स्वछंदता ५-सुंदरी,धन,सुरा,६-अपराध ७-अल्लाह अपनी बात न मानने वालों को गूंगे,बहरे और अंधे कह कर मना करता है कि मत समझो इनको,इनकी समझ में न आएगा


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